

अभिनव न्यूज़, नेटवर्क। जन-जन के आराध्य हैं बाबा रामदेव। भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जैसलमेर जिले का विख्यात रामदेवरा गांव, जो रुणीचा के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां अछूतोद्धारक, साम्प्रदायिक एकता के प्रतीक, मध्यकालीन लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि स्थित है। बाबा रामदेव की समाधि पर देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है।

रामदेव ने 40 साल की उम्र में ली थी समाधि
हर साल बढ़ रही है श्रद्धालुओं की संख्या
यह है बाबा रामदेव का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं व कथाओं के अनुसार करीब 681 वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1402 में बाबा रामदेव का अवतार बाड़मेर जिले के उण्डु काश्मीर में उस समय के राजा अजमलसिंह तंवर के घर हुआ था। उस समय पोकरण में भैरव नाम के राक्षस का आतंक था। उससे मुक्ति दिलाने के लिए वे पोकरण आए। यहां बालीनाथ महाराज के आश्रम में उन्होंने भैरव राक्षस को चमत्कार दिखाया। पोकरण के उत्तर की तरफ स्थित पहाड़ी पर राक्षस को एक गुफा में बंद कर दिया।
बाबा रामदेव ने अपने जीवन में छुआछूत, ऊंच-नीच, भेदभाव जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए कार्य किया। एकां गांव में स्थित पंचपीपली धाम पर पांच पीरों को दिए परचे (चमत्कार) के चलते उन्हें पीर भी कहा जाता है। ऐसे में बाबा रामदेव साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक भी बने। आज भी मेले में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी दर्शनों के लिए आते हैं।