September 6, 2025
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अभिनव न्यूज़, नेटवर्क। जन-जन के आराध्य हैं बाबा रामदेव। भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जैसलमेर जिले का विख्यात रामदेवरा गांव, जो रुणीचा के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां अछूतोद्धारक, साम्प्रदायिक एकता के प्रतीक, मध्यकालीन लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि स्थित है। बाबा रामदेव की समाधि पर देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है।

यूं तो वर्षभर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन वर्ष में एक बार सबसे बड़ा भादवा मेला आयोजित होता है। हालांकि विधिवत रूप से यह मेला भादवा माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से एकादशी तक लगता है, लेकिन श्रद्धालुओं का आना श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में शुरू हो जाता है और भादवा माह की पूर्णिमा तक जारी रहता है।
बाबा रामदेव के इस अंतरप्रांतीय भादवा मेले में राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली आदि प्रांतों से लाखों यात्री पैदल, मोटरसाइकिल, साइकिल, बस, रेल एवं अन्य साधनों से पहुंचते हैं। विशेष रूप से राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, हाड़ौती, शेखावटी, ढूंढाड़, उत्तरी राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु बाबा की समाधि पर पहुंच शीश नवाते हैं।

रामदेव ने 40 साल की उम्र में ली थी समाधि

विक्रम संवत 1442 में भादवा माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन बाबा रामदेव ने 40 वर्ष की उम्र में रामदेवरा में समाधि ली। इन दिनों चल रहे मेले में रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां बाबा की समाधि पर मत्था टेकने पहुंचे रहे हैं। भक्तों की संख्या इतनी अधिक होती है कि दो-तीन किलोमीटर तक लंबी कतार लग जाती है।

हर साल बढ़ रही है श्रद्धालुओं की संख्या

यहां श्रद्धालुओं की संख्या भी हर साल लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले 10 वर्ष में श्रद्धालुओं की 25 से 50 लाख हो चुकी है। आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ने का अनुमान है।

यह है बाबा रामदेव का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं व कथाओं के अनुसार करीब 681 वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1402 में बाबा रामदेव का अवतार बाड़मेर जिले के उण्डु काश्मीर में उस समय के राजा अजमलसिंह तंवर के घर हुआ था। उस समय पोकरण में भैरव नाम के राक्षस का आतंक था। उससे मुक्ति दिलाने के लिए वे पोकरण आए। यहां बालीनाथ महाराज के आश्रम में उन्होंने भैरव राक्षस को चमत्कार दिखाया। पोकरण के उत्तर की तरफ स्थित पहाड़ी पर राक्षस को एक गुफा में बंद कर दिया।

बाबा रामदेव ने अपने जीवन में छुआछूत, ऊंच-नीच, भेदभाव जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए कार्य किया। एकां गांव में स्थित पंचपीपली धाम पर पांच पीरों को दिए परचे (चमत्कार) के चलते उन्हें पीर भी कहा जाता है। ऐसे में बाबा रामदेव साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक भी बने। आज भी मेले में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी दर्शनों के लिए आते हैं।

बालीनाथ महाराज की समाधि के दर्शन

बाबा रामदेव आने वाले श्रद्धालु पोकरण में उनके गुरु बालीनाथ महाराज के आश्रम में भी पहुंच रहे हैं। बालीनाथ महाराज की समाधि के साथ ही परचा बावड़ी के दर्शन कर रहे हैं। इस बावड़ी में बाबा रामदेव की गेंद भी रखी हुई है। मान्यताओं के अनुसार बाबा रामदेव उण्डू काश्मीर से गेंद खेलते हुए पोकरण पहुंचे थे। यहां आए श्रद्धालु कतार में लगकर परचा बावड़ी में रखी इस गेंद के भी दर्शन कर रहे हैं।