

~ संजय आचार्य वरुण
सोशल मीडिया की शुरुआत समाज को जोड़ने की एक सुन्दर परिकल्पना के साथ की गई थी। अपने शुरुआती वर्षों में यह परिकल्पना साकार भी हुई। जिन लोगों से हम बरसों तक मिल नहीं पाते थे, सोशल मीडिया के माध्यम से हमारा उन लोगों से निरन्तर जुड़ाव बना रहने लगा। इसके बाद हम बड़ी राजनीतिक, सामाजिक हस्तियों और सेलिब्रिटीज से सीधे सम्पर्क में रहने लगे। समय के साथ तकनीक का विकास और विस्तार हुआ। विडियो तकनीक प्रचलन में आने लगी। फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम आदि पर प्रत्येक उपयोगकर्ता को लाइव आने की सुविधा मिलने लगी। आज की दिनांक में सभी प्लेटफॉर्म्स को मिलाकर सोशल मीडिया दुनिया की सबसे बड़ी और ताकतवर मीडिया बन चुकी है। रेडियो और अखबार तो दौड़ से कभी के बाहर हो चुके हैं, आज टीवी चैनल्स के लिए भी अपने वजूद को बचाए रखने का संघर्ष शुरु हो चुका है।
आज स्थिति ये है कि हमारा जीवन एक छोटे से यंत्र के चारों ओर सिमट कर रह गया है, जिसे मोबाइल फोन कहकर पुकारा जाता है। इसमें इंस्टॉल की गई एप्स हमारे जीवन का प्रमुख आधार बन चुकी हैं। आज की दिनांक में दुनिया की 80 फीसदी से अधिक आबादी एक दिन या कुछ घण्टे नहीं बल्कि आधे घण्टे भी मोबाइल फोन के बग़ैर नहीं रह सकती है। घर से निकलते समय यदि जल्दबाजी में मोबाइल फोन घर पर छूट जाता है और हम किसी मजबूरी के कारण वापस आकर उसे ले नहीं पाते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि जैसे हम अधूरे हैं। और यह सत्य भी है कि हम मोबाइल फोन के अभाव में कोई भी काम ठीक तरीके से नहीं कर पाते हैं। हम रास्ता देखने के लिए गूगल मैप का इस्तेमाल करते हैं। किसी काम को याद रखने के लिए हम मोबाइल की अलार्म या मोबाइल की नोट बुक का उपयोग करते है। नकद रुपये जेब में रखना बहुत सारे लोगों ने छोड़ दिया है, पेमेंट लेने और देने का तरीका लगभग ऑनलाइन हो चुका है।
हाथ की सामान्य कलाई घड़ी की विदाई हो चुकी है। जिन लोगों के हाथ में घड़ीनुमा यंत्र दिखाई देता है, वह भी मोबाइल ही है और मोबाइल से कनेक्ट रहता है। संदेशों के आदान-प्रदान के साथ ही हमारे सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स भी मोबाइल फोन में रहते हैं। कहने का आशय यह है कि मोबाइल फोन ही हमारे जीवन का केन्द्रीय बिन्दु और अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। सुविधा बढ़ी है लेकिन सहजता समाप्त हो चुकी है। निश्चित रूप से अधिकांश लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे कि हम इंटरनेट की भयंकर गुलामी के शिकार हो चुके हैं। अब सोचिए कि इंटरनेट और हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एप्स की कमान जिन बड़ी- बड़ी कम्पनियों के हाथों में हैं, उनके पास हमारे जीवन की समस्त महत्वपूर्ण जानकारियां सहेजी हुई हैं।
हमारे मित्र और सम्बन्धी कौन हैं, हमारी फोन बुक में किन-किन लोगों के नम्बर्स हैं, इनके साथ ही हमारी पसन्द नापसन्द के बारे में भी वे हमारे परिवार से अधिक जानते हैं। यह विषय बहुत लम्बा और गहरा है, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। आज की दिनांक में मोबाइल से दूर रहना असंभव है लेकिन कुछ विराम और ठहराव की जरूरत है। प्रत्येक समझदार व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन कुछ घण्टे वैसा मोबाइल मुक्त जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए जैसा हम 1980 से पहले जिया करते थे।
यह अभ्यास आगे चलकर आपके लिए उतना ही लाभकारी सिद्ध होगा जितना योगाभ्यास करना फायदेमंद होता है। वैज्ञानिक और डॉक्टर्स समय-समय पर किए गए अनेक शोध कार्यों के जरिये यह प्रमाणित कर चुके हैं कि मोबाइल फोन बहुत सारी मानसिक और शारीरिक बीमारियों का उद्गम स्थल है। आज हर तीसरे व्यक्ति को अनिद्रा की समस्या है, जो साफ तौर पर मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से उत्पन्न हुई है। अनिद्रा की एक समस्या दस से अधिक बड़ी बीमारियों को पैदा करती है, जिससे कि हमें दवाइयों का गुलाम बनकर जीना पड़ता है। नींद नहीं आने की समस्या शरीर के पाचन तंत्र को कमजोर और निष्क्रिय बना देती है। कुल मिलाकर हम कुछ सुविधाओं के लिए सारी उम्र दवाओं का गुलाम बनकर जीना स्वीकार कर चुके हैं। आइए, थोड़ा-थोड़ा ही सही अभ्यास तो करें कुछ समय मोबाइल फोन से दूर उन्मुक्त जीवन जीने का। मोबाइल से थोड़ा दूर होने पर हमारे कार्यों को लेकर कुछ असुविधा हो सकती है लेकिन तन और मन धीरे- धीरे आनन्द की ओर बढ़ेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं।