September 6, 2025
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अभिनव न्यूज़, बीकानेर। अमरकांत प्रेमचंद की परम्परा को मजबूत करनेवाले कथाकार हैं। ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में आजादी के बाद के भारत की भुखमरी और बेरोजगारी के यथार्थ का विस्फोट है। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज द्वारा कथाकार अमरकांत की जन्मशती पर उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘दोपहर का भोजन और आज का भारत ‘विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्षीय भाषण देते हुए केशव भट्टड़ ने ये विचार व्यक्तकिए। मुंशी प्रेमचंद लाइब्रेरी कोलकाता में 30अगस्त को साहित्य संस्कृति उप समिति द्वारा आयोजित संगोष्ठी में केशव भट्टड़ ने कहा कि ‘दोपहर का भोजन ‘कहानी का कथानक बिना किसी सजावट के शब्द चित्र की तरह दृश्य सामने आता है। डेढ़ महीने पहले परिवार के मुखिया की नौकरी से छटनी हो जाती है।

पति, पत्नी और तीन बेटों के परिवार में किसी के पास रोजगार नहीं है। डेढ़ महीने के अंदर घर में एक समय के भोजन के संघर्ष की स्थिति आ गयी है। परिवार में खुलकर संवाद का अभाव है। आर्थिक तनाव के कारण परिवार में संवादहीनता है। पाँचवें दशक में प्रकाशित अमरकांत की कहानी ‘दोपहर का भोजन’ और शेखर जोशी की कहानी ‘दाज्यू ‘आजादी के मोहभंग की कहानी है। राजीव पांडेय ने कहा कि’ दोपहर का भोजन ‘कहानी भोजन के साथ भूख की कहानी है। कहानी में माँ हर समय झूठ बोलती है।झूठ बोलने का कारण परिवार को एकजुट रखना और परिवार में एक दूसरे के प्रति सम्मानबोध बनाए रखना है। पाठ्यक्रम में रहने के कारण इस कहानी को काफी लोकप्रियता हासिल है। नरेंद्र पोद्दार ने कहा कि आजादी मिलने के बाद गरीबी से मुक्ति की उम्मीद की गयी थी। लेकिन परिवार गरीबी से जूझ रहा है। गरीबी का सबसे ज्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर होता है। परिवार के मुखिया के लिए दो रोटी और अंत में माँ और छोटे बेटे के हिस्से आधी रोटी आती है।आज देश में 19 करोड़ परिवार हैं जिन्हें तीन वक्त का भोजन नहीं मिलता है। संचालन करते हुए अभिषेक कोहार ने कहा कि अमरकांत नयी कहानी आंदोलन के यथार्थवादीधारा के महत्वपूर्ण कथाकार हैं।वे आजादी के बाद शहरी निम्न मध्यम वर्ग की जिंदगी की जीवंत कथा कहते हैं। यशपाल ने उन्हें ‘भारत का गोर्की’ कहा है। श्रीप्रकाश जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि इस कहानी के प्रकाशन के तीन साल बाद ही कलकत्ता में ऐतिहासिक खाद्य आंदोलन का भूखा महाजुलूस निकला था जिसमें पुलिस की गोली से 80लोग मारे गये थे।