July 7, 2025
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~ संजय आचार्य वरुण

 

बीकानेर शहर में अपराधों का ग्राफ निरंतर ऊपर की ओर जा रहा है। आए दिन भरे – भरे आबाद रहने वाले मार्गों पर लूटपाट की घटनाएं होने लगी हैं। शांतिप्रिय और धर्म नगरी कहे जाने वाले इस शहर में इस तरह का बदलाव स्वीकार्य नहीं है। पुलिस को अपराधों और अपराधियों की जड़ तक पहुँचना होगा वरना उनके हौसले इसी तरह से बुलन्द होते जाएंगे। यह वही शहर है जहां महाराजा गंगासिंह जी के शासनकाल में परकोटे के भीतर की महिलाएं शिवबाड़ी के लिए रात को पैदल निकल पड़ती थी। एक बार महाराजा गंगासिंह जी भेष बदल कर रात्रि को शहर की सुरक्षा व्यवस्था देखने के लिए घूम रहे थे। उन्होंने रात्रि को महिलाओं को शिवबाड़ी की तरफ जाते हुए देखकर उनको स्थानीय भाषा में पूछा कि क्या आपको इतनी रात को सुनसान रास्ते पर पैदल जाते हुए डर नहीं लगता ? महिलाओं ने कहा कि ‘भाईड़ा, औ गंगे बाबै रौ राज है, की री मजाल है कै म्हांनै आंख उठा’र देख लै।’ महिलाओं का जवाब सुनकर वेश बदले महाराजा को संतोष हुआ कि उनके राज में आम जनता निर्भय है और स्वयं को सुरक्षित समझती है। भले ही हम सामंतवाद कहकर राजा- महाराजाओं की निन्दा करते रहें लेकिन वास्तविकता यही है कि उस समय हालात आज तो बहुत बेहतर थे। आजकल तो शाम होने के बाद कोटगेट से बाहर दूर दराज के स्थान के लिए जाने पर अच्छे- खासे मर्द को भी किसी को साथ लेकर जाना पड़ता है। बीकानेर के मशहूर कवि और शायर स्व. गौरीशंकर आचार्य अरुण का एक शे’र ऐसी स्थितियों में बहुत याद आता है कि ‘है कहां महफूज राहें अब ‘अरुण’, सोचकर घर से निकलना चाहिए।’ कवि और शायर अपने समय की सच्चाइयों को ही बयान करते हैं। बहरहाल, पुलिस जितनी मुस्तैदी से बिना हैलमेट वालों की धर पकड़ करती है उतनी ही मुस्तैदी से अगर अपराधों की रोकथाम हेतु भी काम करने लग जाए तो आम आदमी की दहशत कुछ कम हो सकती है।

हैलमेट चैकिंग के लिए पुलिस को उन रास्तों पर खड़ा होना चाहिए जो बड़े मार्ग हों, जहां भारी वाहन और दुपहिया वाहन साथ साथ तेज रफ्तार से चलते हैं। शहर के अंदर जाने वाले गलियों जैसे रास्तों पर हैलमेट के चालान काटने को उचित नहीं माना जा सकता, ऐसे रास्तों पर वाहन के स्पीडोमीटर की सुई 20 से आगे ही नहीं बढ़ती। जिस तरह हैलमेट की जांच होती है उसी तरह से पुलिस को संदिग्ध लोगों अथवा ढाटा लगाकर घूमने वालों को रोककर उनके पहचान पत्र और आधार कार्ड आदि देखने चाहिए। इस कार्य में आम जनता को भी जागरुकता से पुलिस का सहयोग करना जरूरी है। हमारे इस प्यारे से शहर को छोटी काशी कहा जाता है, प्रशासन, अधिकारीगण और जन प्रतिनिधियों सहित यहां के प्रत्येक निवासी का ये दायित्व है कि ‘छोटी काशी’ नाम की गरिमा बनी यहे।