July 7, 2025
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~ ज्योतिषाचार्य राकेश हर्ष

ज्योतिष शास्त्र का संपूर्ण आधार 9 ग्रह, 27 नक्षत्र, 12 भाव और 12 राशियों पर टिका हुआ होता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों का सीधा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। आज हम 9 ग्रहों के बारे में आपको बताएंगे कि इन सभी ग्रहों का जातकों के जीवन पर कैसा प्रभाव रहता है। ज्योतिष में नौ ग्रहों का क्रम इस प्रकार होता है। 1- सूर्य 2- चंद्रमा 3- मंगल 4- बुध 5-गुरु 6- शुक्र 7- शनि 8- राहु 9- केतु।

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह
वैदिक ज्योतिष में सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्यदेव आत्मा के कारक ग्रह हैं। सूर्य को सभी ग्रहों में सबसे ऊर्जावान ग्रह माना जाता है। सूर्य जो कि नौग्रहों में सबसे प्रधान ग्रह हैं ये ऊर्जा, पराक्रम, साहस, नेतृत्व क्षमता, यश, मान-सम्मान और पिता का कारक ग्रह माना गया है। जिन जातकों की कुंडली में सूर्य मजबूत और शुभ स्थानों पर बैठे होते हैं उनको जीवन में हमेशा अच्छे परिणाम ही हासिल होते हैं। सूर्य के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति कार्यक्षेत्र में उच्च पदों की प्राप्ति होती है। कालपुरुष की कुंडली में सूर्य प्रथम, नवम और दशम भाव के कारक होते हैं। सूर्य अपनी सातवीं द्दष्टि से देखते हैं। सूर्य को सिंह राशि का स्वामित्व प्राप्त है। सूर्य ग्रह भगवान राम के दशावतार हैं। सूर्य मेष राशि 10 डिग्री तक उच्च के होते हैं जबकि तुला राशि में 10 डिग्री तक नीच के हो जाते हैं। सूर्य की मूल त्रिकोण राशि सिंह है जिसमें यह 20 डिग्री तक रहते हैं। सूर्य सिंह राशि में स्वग्रही होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह
ज्योतिष में सूर्य को जहां राजा वहीं चंद्रमा को रानी का दर्जा प्राप्त है। चंद्रमा को माता, मन, धन, यात्रा और पानी का कारक माना है। व्यक्ति की कल्पना शक्ति चंद्र ग्रह से ही मापी जाती है। कुंडली में चंद्रमा जिस राशि में बैठते हैं वह जातक की चंद्र राशि होती है। कालपुरुष की कुंडली में चंद्रमा चौथे भाव के कारक होते हैं। चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामित्व प्राप्त है। यह वृषभ राशि में उच्च के होते हैं जबकि वृश्चिक राशि में नीच के हो जाते हैं। चंद्रमा वृषभ राशि में 3 डिग्री तक उच्च के और 27 डिग्री तक मूल त्रिकोण में होते है।

 वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह
ज्योतिष में मंगल ग्रह को सेनापति का दर्जा हासिल है। मंगल रक्त, साहस, पराक्रम, युद्ध, भूमि, पुलिस, सेना, क्रोध, हथियार छोटे भाई का कारक माना जाता है। मंगल को क्रूर ग्रह माना जाता है। कुंडली में मंगल दोष होने पर जातक के वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कालपुरुष की कुंडली में मंगल तृतीय और षष्टम भाव के कारक होते हैं। मंगल ग्रह को मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी ग्रह माना गया है। मंगल की चौथी, सातवीं और आठवीं तीन द्दष्टियां होती है। मंगल मकर राशि में 28 डिग्री तक उच्च के और कर्क राशि में 28 डिग्री तक नीच के हो जाते हैं। मंगल मेष और वृश्चिक में स्वग्रही और मेष में 12 डिग्री तक मूल त्रिकोण में होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह
बुध को नौ ग्रहों में राजकुमार का दर्जा प्राप्त है। बुध बुद्धि, तर्कशास्त्र, गणित, व्यापार और संचार का कारक ग्रह माना जाता है। बुध सभी ग्रहों में एकलौते ऐसे ग्रह हो जो तटस्थ होते हैं। यह जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसी के अनुसार रिजल्ट देते हैं। कालपुरुष की कुंडली में बुध चौथे और दशम भाव के कारक होते हैं। बुध कन्या राशि में उच्च के और मीन राशि में नीच के होते हैं। बुध को मिथुन और कन्या राशि का स्वामित्व प्राप्त है।

वैदिक ज्योतिष में गुरु ग्रह
कालपुरुष की कुंडली में गुरु द्वितीय, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव के कारक होते हैं। गुरु को तीन द्दष्टियां प्राप्त हैं पांचवीं, सातवीं और नौवीं। गुरु धनु और मीन राशि के स्वामी होते हैं। गुरु कर्क राशि में उच्च के और मकर राशि में नीच के होते हैं। गुरु धनु राशि में 10 डिग्री तक मूल त्रिकोण राशि होती है। गुरु कुंडली के जिस स्थान पर बैठते हैं उस भाव के फलों में कमी कर देते हैं, लेकिन यह भाव पर दृष्टि रखते हैं उसके फलों में बढ़ोतरी कर देते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह
कालपुरुष की कुंडली में शुक्र सप्तम और द्वादश भाव के कारक होते हैं। शुक्र मीन राशि में उच्च के जबकि कन्या राशि में नीच के होते हैं। शुक्र वृषभ और तुला राशि के स्वामी होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह
कालपुरुष की कुंडली में षष्टम, अष्टम और दशम भाव के कारक होते हैं। शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी ग्रह होते हैं। शनि तुला राशि में उच्च के जबकि मेष राशि में नीच के होते हैं। कुंभ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि होती है।

वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह
ज्योतिष में राहु को पापी और छाया ग्रह माना गया है। इन्हें किसी भी राशि का स्वामी नहीं माना गया है। यह मिथुन राशि में उच्च के और धनु राशि में नीच के होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह
केतु को भी छाया ग्रह माना गया है और इन्हे भी किसी राशि का स्वामी ग्रह नहीं माना गया है। यह धनु राशि में उच्च के और मिथुन राशि में नीच के होते हैं। राहु और केतु पंचम एवं नवम भाव में अपनी पूर्ण दृष्टि रखते हैं।

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